A Review Of Hindi poetry

कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।।८८।

बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने,

कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,

किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।

इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता है प्याला,

कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,

मैंने बचपन में एक कविता पढ़ी थी, जिसका शीर्षक में भूल गया हूँ

शौक, here साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है,

मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।

कानो में तुम कहती रहना, मधु का प्याला मधुशाला।।८१।

डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।।७६।

पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।४४।

लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,

वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला,

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